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By Dharmendra Kumar

Mediabharti.netOct 27, 2023

कुछ इस तरह होगी भविष्य में भारत की राजनीति...
भविष्य में भारत की राजनीति किस करवट बैठेगी? भारतीय जनता पार्टी को विपक्ष के रूप कौन दे पाएगा टक्कर...। विस्तार से जानिए वरिष्ठ पत्रकार केशव चतुर्वेदी और मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार के बीच हुई इस बातचीत में...।

तीन महीने तक खिंच सकता है इजरायल-हमास का युद्ध…!
इजरायल और हमास के बीच जारी युद्ध अगले तीन महीने तक भी खिंच सकता है और यदि यह युद्ध इसी तरह तीव्रतर होता चला गय़ा तो यह इस्लाम धर्म के पतन की एक शुरुआत भी हो सकता है। युद्ध की मौजूदा स्थिति के बार में विस्तार से जानिए वरिष्ठ पत्रकार केशव चतुर्वेदी और मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार के बीच हुई इस बातचीत में...
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उत्तर की तुलना में ज्यादा 'समझदार' है दक्षिण भारत का मीडिया
उत्तर और दक्षिण भारत के मीडिया में एक बड़ा अंतर यह है कि दक्षिण में खबरों को 'सनसनीखेज' बनाकर पेश करने का चलन उतना नहीं है जितना देश के उत्तरी इलाकों में है। देश के दोनों हिस्सों के बीच मीडिया के प्रस्तुतीकरण में अंतर को स्पष्ट कर रही हैं ह्यूमरटाइम्स.कॉम की संपादक मुक्ता गुप्ता...

हिंदी पत्रकारिता के उन्नयन में मददगार है ऑनलाइन माध्यम
ऑनलाइन माध्यमों के उत्कर्ष के बाद पत्रकारिता, खासकर हिंदी पत्रकारिता के उन्नयन में मदद ही मिली है। इसे अन्य माध्यमों के लिए खतरे के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। वर्तमान मीडिया परिक्षेत्र के बदले हुए माहौल में ऑनलाइन पत्रकारिता के योगदान पर चर्चा कर रहे हैं मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार...

देश को नहीं है ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की जरूरत
‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का मुद्दा ‘गर्मी’ पकड़ने लगा है। साथ ही, यह बहस भी एक बार फिर शुरू हो चुकी है कि क्या ऐसा करना जरूरी है। पांच साल में 'एक बार' और 'एक साथ' चुनाव के लिए जो 'वजहें' बताई जा रही हैं, बेशक उनमें से कई 'जायज' हैं, लेकिन की वजहें किसी भी तरह से गले नहीं उतरती हैं। 'सुखी लोकतंत्र' के लिए रोजाना कहीं न कहीं चुनाव होते ही रहने चाहिए, नेताओं को अपना 'रिपोर्ट कार्ड' मिलते रहना चाहिए। राम मनोहर लोहिया ने कभी कहा था कि जिंदा कौमें पांच साल तक इंतजार नहीं करती तो फिर आज की सत्ता एक जिंदा कौम को ऐसा करने पर मजबूर क्यों कर रही है? इसी मुद्दे से जुड़े कई सवालों पर मीडियाभारती.नेट से बात कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार विनीत सिंह।

इतनी भी आसान नहीं है 'पांच ट्रिलियन डॉलर' की अर्थव्यवस्था...
कोरोना के चलते 'पांच ट्रिलियन डॉलर' की अर्थव्यवस्था के सपने को एक बड़ी चोट पहुंची है। अब इसे लेकर सरकार द्वारा उठाए गए आगामी 'ठोस' कदम ही तय करेंगे कि यह 'सपना' सिर्फ सपना ही रहेगा या कोई मूर्त रूप ले पाएगा। इस विषय पर विस्तार से बता रहे हैं मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार...

तीन महीने के खर्चे जितनी बचत है बेहद जरूरी
आपद काल में छोटी बचतें कितनी कारगर साबित हो सकती हैं, मीडियाभारती.नेट से बात करते हुए बता रहे हैं वित्त नियोजक अभिनव गुप्ता...

अब 'साइलेंट वोटर' ही खोलेगा सत्ता का द्वार
चुनावी प्रक्रिया में, 'साइलेंट वोटर' के रूप में एक नया 'फिनोमिना' सामने आया है। मतदाताओं का यह वर्ग अपनी 'राय' जाहिर नहीं करता है, सिर्फ वोट करता है। मतदाताओं के इस नए रूप और व्यवहार के बारे में मीडियाभारती.इन से बात कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार ब्रज खंडेलवाल।

भरोसे में आई कमी से बढ़ी हैं नरेंद्र मोदी की मुश्किलें
हालिया कुछेक महीनों में सरकार के कई फैसलों से लोगों के बीच उनके प्रति विश्वास कुछ कम हुआ है। कृषि कानूनों को लेकर किसानों का असंतोष भी उनमें से एक है। यदि सभी वर्गों को भरोसे में लेकर काम करने की रणनीति बनाई जाए तो कई अनावश्यक गतिरोधों से बचा जा सकता है। मीडियाभारती.नेट से बात करते हुए वरिष्ठ पत्रकार विनीत सिंह बता रहे हैं कि कैसे इन ऊहापोह-भरी स्थितियों से बचा जाय...

निजता के नाम पर न बने दूरी
निजता के नाम पर रिश्तों में दूरी बनाने से होने वाले नुकसानों का जिक्र कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार केशव चतुर्वेदी...

भोजपुरी भाषा के उद्गम की कहानी
भोजपुरी साहित्य की परंपरा संत कबीर दास, दरिया दास व तुलसी दास से लेकर भिखारी ठाकुर की रचनाओं तक विस्तारित है। माना जाता है कि संस्कृत की साक्षात पुत्री है भोजपुरी भाषा...। साहित्य समालोचक प्रमोद कुमार पांडेय बता रहे हैं, भोजपुरी भाषा के उद्गम की कहानी...

अजीब दोराहे पर अटक गया है मीडिया
बीते कई राजनीतिक और सामाजिक प्रकरणों में रिपोर्टिंग से ऐसा लगने लगा है कि मीडिया अपनी मारक क्षमता कहीं खो बैठा है। मीडिया के सुर, लय और ताल के खो जाने से खिन्न ब्रज खंडेलवाल बता रहे हैं इसकी वजह...

कम आमदनी में भी ऐसे जारी रखें छोटे निवेश...
कोरोना काल में, हालांकि, घरेलू निवेश करने की बात थोड़ी अटपटी तो लगती है लेकिन सतत छोटा निवेश किसी भी घर की अर्थव्यवस्था का एक अहम पहलू है। ऐसे समय में जब आमदनी कम हुई है, नौकरियां छूट रही हैं, फिर भी, छोटे-छोटे निवेश के जरिए इस प्रक्रिया को कैसे जारी रखा जा सकता है? इसी तरह के कई सवालों पर वित्त नियोजक अभिनव गुप्ता से बात कर रहे हैं मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार...

समझिए एमएसपी का असली 'खेल'
किसानों के संघर्ष की मुख्य वजह बना न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी आखिर है क्या? बहुत ही आसान भाषा में बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार प्रिय रंजन झा...

एमएसपी को ‘लीगल’ करने से नहीं है कोई फायदा
किसान सड़कों पर उतरकर नए कृषि कानून का विरोध कर रहे हैं। लेकिन, ये पंजाब के किसान हैं..., या पंजाब की सीमा से लगे हरियाणा और कुछ दूसरे इलाकों के...। यूपी, बिहार, महाराष्ट्र या कर्नाटक के किसान इस तरह का विरोध नहीं कर रहे हैं। क्यों नहीं कर रहे हैं, यह सवाल है। क्या पंजाब के किसान नए कृषि कानूनों को समझ नहीं पा रहे हैं? इसके विपरीत, केंद्र सरकार विरोध कर रहे इन किसानों को क्यों नहीं समझा पा रही है? एमएसपी को कानूनी रूप से अनिवार्य करने में क्या अड़चन है? क्या किसानों की आड़ में नेतागिरी हो रही है? असली समस्या क्या है? इसका हल क्या है? ऐसे ही कई सवालों पर वरिष्ठ पत्रकार प्रियरंजन झा के साथ बात कर रहे हैं मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार ...

‘लव जिहाद’ या महज बीजेपी का खुराफाती दिमाग!
यूपी, मध्य प्रदेश और अब हरियाणा में भी सरकारों ने लव जिहाद पर कानून बनाए जाने के संकेत दे दिए हैं। कानून बन भी जाएंगे, लेकिन क्या वाकई लव जिहाद जैसा कुछ है भी या यह बीजेपी के खुराफाती दिमाग की महज उपज मात्र है? हाल ही में कुछ घटनाएं ऐसी भी हुईं जिनमें हिंदू वधू और मुस्लिम वरों के रिश्ते टूटे हैं लेकिन सामाजिक जमीन पर ये घटनाएं लव जिहाद के दायरे में आती भी हैं या नहीं...? साथ ही, क्या अपनी पहचान छुपाकर रिश्ते बनाने के मामलों के पीछे लव जिहाद ही है? ऐसे ही कई सवालों पर वरिष्ठ पत्रकार केशव चतुर्वेदी से बात कर रहे हैं मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार ...

आ गया है एक्जिट पोल से पीछा छुड़ाने का समय
बिहार चुनावों के परिणाम हमारे सामने आ चुके हैं... और, जैसे कि पिछले कई बार से एक्जिट पोल के नतीजे लगातार गलत आ रहे हैं, इस बार भी गलत ही साबित हुए। तो, क्या अब वक्त नहीं आ गया है कि एक्जिट पोल की इस 'बेवकूफाना' अवधारणा को उठाकर डिब्बे में बंद करके कहीं रख दिया जाए…? एक्जिट पोल की प्रासंगिकता और इससे जुड़े कई दूसरे सवालों पर मीडिया आलोचक और वरिष्ठ पत्रकार ब्रज खंडेलवाल से बात कर रहे हैं मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार ...

बिहार चुनाव परिणामों के क्या हैं मायने?
बिहार में चुनावों के परिणाम आ चुके हैं। अब बिहार में राजनीतिक माहौल कैसा रहेगा और उसका केंद्र की राजनीति पर क्या असर पड़ने वाला है? इन्हीं सब बातों पर वरिष्ठ पत्रकार बिपिन तिवारी से बात कर रहे हैं मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार ...

उत्तर और दक्षिण का सामाजिक विभाजन : मिथक और वास्तविकताएं
पूरी दुनिया में उत्तर और दक्षिण के बीच श्रेष्ठता को लेकर द्वंद्व की बात की जाती है। मानवीय रंग से जुड़ी संवेदनाएं भी इस संघर्ष में अपनी भूमिकाएं निभाती रही हैं। आदिकाल से चली आ रही यह बहस भारतीय उपमहाद्वीपीय समाज में भी नजर आती है। इस सामाजिक विवाद के स्वरूप और जटिलताओं को समझने के लिए ह्यूमर टाइम्स की संपादक मुक्ता गुप्ता से बात कर रहे हैं मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार …

धर्म की राजनीति का अगला पड़ाव तो नहीं है श्री कृष्ण जन्मभूमि आंदोलन!
राम जन्मभूमि मामले में अदालत के फैसले के बाद मंदिर बनने का मार्ग प्रशस्त हो चुका है। मंदिर बनना शुरू भी हो चुका है। देर-सवेर मंदिर बन भी जाएगा। लेकिन, क्या अब इसके बाद श्रीकृष्ण जन्मभूमि और काशी मामले का सिर उठाना महज इत्तेफाक है? ऐसे कई सवालों पर वरिष्ठ पत्रकार विनीत सिंह के साथ बात कर रहे हैं मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार ...

सरकारें नहीं, समाज खत्म करेगा बढ़ती ‘संवेदनहीनता’ को
समाज में संवेदनहीनता लगातार बढ़ती जा रही है। अस्पतालों में, पुलिस के थानों में, किसी सरकारी दफ्तर में या कहीं भी आप जाएं और संवेदनहीनता से दो-चार न हों, यह आज की भागमभाग भरी जिंदगी में संभव ही नहीं है। हमारे समाज में लगातार बढ़ रही ‘संवेदनहीनता’ के कई ऐसे ही पहलुओं पर वरिष्ठ पत्रकार केशव चतुर्वेदी से बात कर रहे हैं मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार ...

‘बकवास’ ही नहीं, बढ़िया सिनेमा भी बनता है भोजपुरी में
... एक रात को दो बजे, जब अचानक नींद खुल गई तो टीवी से 'उलझ' बैठे और चैनल सर्फ करते-करते 'भोजपुरी टेरीटरी' तक जा पहुंचे। किसी मूवी चैनल पर निरहुआ की फिल्म 'बिदेसिया' आ रही थी। भोजपुरी में ऐसी फिल्में भी बनती हैं, यह जानकर अचंभा हुआ। नौटंकी विधा को फिल्म विधा के साथ गूंथकर बनाई गई यह फिल्म जब देखना शुरू किया तो फिर चैनल बदल ही नहीं पाए। जरूरी नहीं है कि मिठास और श्रम की भाषा भोजपुरी में 'बकवास' फिल्में ही बनती हैं, यहां 'बढ़िया' सिनेमा भी है। भोजपुरी सिनेमा के पुराने रसूख और मौजूदा स्थिति पर वरिष्ठ पत्रकार और साहित्य समालोचक प्रमोद कुमार पांडेय से बात कर रहे हैं मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार ...

बचपन से ही क्यों न दी जाए कानून की शिक्षा..!
हमारे देश में छात्रों के लिए विधिक शिक्षा का प्रावधान स्नातक स्तर पर ही होता है। हालांकि, इससे पहले, विद्यार्थियों को नागरिक शास्त्र के रूप में, थोड़ी-बहुत जानकारी जरूर दी जाती है, लेकिन इसे पर्याप्त कतई नहीं कहा जा सकता। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि वयस्क होने तक भी हमारे विद्यार्थियों के पास अपने ही देश के कानून के बारे में मूलभूत जानकारियां तक नहीं होती हैं। जब ये बच्चे एक नागरिक के रूप में कोई कानूनी मदद लेने के लिए किसी पुलिस थाना या अदालत में पहुंचते हैं, तो इन्हें कानूनी प्रक्रिया, अपने संवैधानिक दायरों, कर्तव्यों और यहां तक कि अधिकारों के बारे में भी बहुत कम जानकारी होती है। देश में वैधानिक शिक्षा के मौजूदा स्वरूप पर अधिवक्ता और विधिक मामलों के जानकार अमिताभ नीहार के साथ बात कर रहे हैं मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार ...

क्या बीजेपी नीतीश कुमार को 'किनारे' लगाने की कोई चाल चल रही है?
बिहार में चुनावी सरगर्मियां बहुत तेज हो गई हैं। दल-बदल और राजनीतिक दलों में तोड़म-फोड़ अपने चरम पर है। नए-नए प्रयोग हो रहे हैं। चिराग पासवान एनडीए में हैं, लेकिन नहीं हैं। वह नीतीश कुमार के साथ भी नहीं हैं। एनडीए उनके दल लोक जनशक्ति पार्टी को अपना घटक मानता है, लेकिन चुनावी अभियान में मोदी के फोटो और नाम का इस्तेमाल करने से रोक भी रहा है। क्या इस सबके पीछे बीजेपी की नीतीश कुमार को किनारे लगाने की कोई चाल है? ऐसे ही कई सवालों के जवाब पाने और बिहार की वर्तमान राजनीति को समझने के लिए वरिष्ठ पत्रकार प्रियरंजन झा के साथ चर्चा कर रहे हैं मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार ...

पक्ष, विपक्ष और मीडिया को अपने गिरेबां में झांकने की जरूरत
हाथरस में विपक्षी दलों के नेताओं और मीडिया को आखिर क्यों रोका गया? इस मामले में पक्ष, विपक्ष और मीडिया अपनी भूमिका किस तरह निभा पाए, इस पर पूरी चर्चा होनी चाहिए। इस पूरे प्रकरण में सभी संबद्ध पक्षों का कितना लाभ हुआ, इसका आंकलन करना बेहद जरूरी है। इसी विषय पर वरिष्ठ पत्रकार ब्रज खंडेलवाल के साथ चर्चा कर रहे हैं मीडियाभारती.नेट के संपादक धर्मेंद्र कुमार ...